(My poem on my favourite tree Parijat. Few years ago at my home i saw it in sunny days..how lifeless and those words came in my mind ... जलती धूप का साक्षी बनकर खड़ा है कुंपलों को पान बनाने में लगा है लगता है शांत सा सागर जैसा पढ़ शांत रहकर भी वह बहुत कुछ सिखाता है वह अपने आप को जीवंत रखने में अस्तित्व को उत्सव बनाने में लगा है हरा नहीं है पर.... किसी को छाया देकर किसी के होठों की मुस्कुराहट बनकर इस सृष्टि के कोने में रंग बिछाने की आस लेकर खड़ा है अस्तित्व को सुगंध से महकाने किसी की मीठी यादों को जीवंत बनाने में लगा है वह जलती धूप का साक्षी बनकर खड़ा है कुंपलों को पान बनाने में लगा है चिड़िया की चींचीं लगता है कह रहे हैं उसे की होता है महसूस दुख देख कर तुझे लेकिन खिलकर मुरझाना मुरझाकर खिलना वही तो है जिंदगी है रास्ता चाहे कितना भी लंबा पर मंजिल से ही उसकी पहचान है तुम बस एक बूंद सा विश्वास रखना ह्रदय में समुंदर तुझसे मिलने आएगा