#15 February 2019
#ए कौनसी मशाल है जो सबके भीतर जल रही है?
जिसके कारण कोई शहिद होने को तैयार हो जाता है, तो कोई आत्मघाती हमला करने। आज सवाल ऐ होता है कि हम मानवता और कर्मा फिलोसोफी के विचार से तो बहोत दूर निकल छूके है, तो क्या आज धर्म भी कट्टरता का झण्डा बना जा रहा है ??? पुलवामा मे हुआ ऐ आतंकी हमला जिसमे CRPF के ४४ जवानों ने जान खोयी है, वो हमें ए सोचने पर मजबूर करता करता देता है, ओर तत्काल ही टेलेविज़न या सोशल मीडिया पर तेजी से एक उग्र राष्ट्रवाद की हवा फैल जाती है। क्या ए वो solution है? जिससे हम इस तरह कि भयानक घटनाओं को दुबारा होने से रोक सकते है या फिर इन सब बातों का जवाब एक मात्र शब्द में हैं… युद्ध?
इन सारे सवालों मे एक वास्तविकता है जो हमारे सामने बेशर्म बन के खड़ी है, न तो उसे बदला जा सकता है और ना ही सहा जा सकता है क्योंकि, हमले मे मारे गए करीब ४४ जवान की शहीदी, ‘Deat of Individual' पर सोचने को मजबूर करती है। एक मृत्यु से व्यक्ति या फिर किसी का exist न करना, कई बातों का रूपक है। कुछ करने के जोश से पैदा किया हुआ व्यक्तित्व अगर एक ही पल में नष्ट होता है तो ये बड़ा अनर्थ है।
इन सब सवालो के बीच एक उम्मीद है, की क्या ऐसी कला है जो पूरी मानवजाति को इन सब हिंसा से मुक्त कर सकती है???
Comments
Post a Comment