चलो कुछ नए बीज बोते है बीते हुए कलमें क्यु... हम आज को खोते है. चलते रहना ही जींदगी है... दोस्त! फिर भी क्यु हम होंश खोते है. आखिर अटक जाता है वो तो सड जाता है फिर क्यु कही पडाव डाल कर...अटक जाते है. हर कायँ का कारण से... राह का मंझील से... ईन्तजार का मिलन से... आरजू का धन्यता से... मीलना हे ही तो क्यु कुछ आंसू बीना वजह ही बेहते हे. नासमझ होते है वो लोग जो आंख बंधकर चाहत लगाते है क्योंकि आंख बंध कर लेने से... अंधकार नही मीटता. सूरज ना बन सके सहि... चलो... एक दीप बनते हे रोशन करते है एक कोने को क्युंकि , रोशनी आई की अंधकार गया...!